पिता का प्रेम
मधुर प्रेम जिनका था मुझपे,
पर ना दिखाना जाने वो।
जिनकी वाणी मे कठोरता,
मन मे भरी कोमलता हो।
है नभ से भी सर्वोपरि,
जिनका हृदय इतना विशाल।
अपने सपनों को त्याग नयन से,
रखे हमारे सपने सम्भाल।
अपने अरमनो का दे बलिदान,
रखे हैं हृदय मे हमारे अरमान।
जिनके लिए सब व्यर्थ निरा है,
जिनसे हमारी है पहचान।
कठिन श्रम कर अथक प्रयास कर,
जिसने दी हमें प्रसन्नता।
हिम्मत रखना कभी ना हारना,
हमने है जिनसे सीखा।
बड़ों का मान छोटो को प्यार,
देना ये जाना जिनसे।
कभी राम बन, कभी कृष्ण बन,
ईश्वर भी आए धरती पे।
तब जाकर पाया है प्रभु ने,
आपके प्यार का परमानंद।
नभ से भी महान, उस देव समान,
का करते हैं हम वन्दन।
उनके प्रयास और बलिदान को,
व्यर्थ न जाने देंगे हम।
हे! पिता महान, आप धन्य हो,
जिसने दिया मुझे जीवन।